दवाओं के एक जैसे नाम पर एनएचआरसी का स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मीडिया में छपे एक आलेख पर स्वत: संज्ञान लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य (Ministry of Health) मंत्रालय व भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) को नोटिस जारी किए हैं। लेख में आरोप लगाया गया है कि बड़ी संख्या में ऐसी दवाएं हैं जिनके नाम लिखने या बोलने में एक जैसे हैं, पर उनका इस्तेमाल अलग बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
गलतियों का भी अधिकारियों द्वारा कोई डाटा नहीं रखा जाता
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एनएचआरसी ने एक बयान में कहा, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण (Ministry of Health) संगठन (सीडीएससीओ) को सबसे पहले प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश के 36 विभिन्न औषधि नियंत्रकों से डाटा एकत्रित करके सभी दवाओं के ब्रांड नामों का डाटाबेस बनाना चाहिए क्योंकि देश में ऐसा कोई डाटाबेस नहीं है। यहीं नहीं अधिकारियों द्वारा दवाएं प्रिस्क्राइब करने में गलतियों का भी अधिकारियों द्वारा कोई डाटा नहीं रखा जाता।
आलेख में बताया गया है कि लिखने व बोलने में एक जैसे नाम वाली दवाओं में भ्रम होने पर परिणाम मरीजों के लिए काफी गंभीर हो सकता है क्योंकि एक जैसे नाम वाली दवाओं को इस्तेमाल बिल्कुल ही अलग बीमारियों के इलाज में किया जाता है। आयोग ने कहा कि आलेख की सामग्री अगर सत्य है तो यह मानवाधिकारों का गंभीर मुद्दा है। लिहाजा उसने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और डीसीजीआइ से चार हफ्ते में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
प्रस्तावित कदमों के बारे में भी बताना होगा
रिपोर्ट में उन्हें इस मुद्दे से निपटने के लिए उठाए गए कदमों या प्रस्तावित कदमों के बारे में भी बताना होगा। 25 जनवरी को प्रकाशित समाचार पत्र आलेख में एक जैसे नाम वाली कुछ दवाओं का उदाहरण भी दिया गया है। मसलन- ‘लिनामैक 5’ का इस्तेमाल एक प्रकार के कैंसर के इलाज में किया जाता है जबकि ‘लिनामैक’ का इस्तेमाल डायबिटीज में होता है।