मध्य प्रदेश की सियासत एक बार फिर उपचुनाव की कसौटी पर उतरेंगी

मध्य प्रदेश की सियासत एक बार फिर उपचुनाव की कसौटी पर उतरने वाली है। इस बार तीन विधानसभा क्षेत्रों और लोकसभा की एक सीट के लिए उपचुनाव होने वाले हैं। हालांकि अभी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन रजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं। क्षेत्रवार सामाजिक समीकरणों को सहेजने के साथ प्रत्याशी चयन की कवायद शुरू की जा चुकी है। यद्यपि इन उपचुनावों के परिणाम से न तो भाजपा की केंद्र सरकार पर कोई असर पड़ने वाला है और न राज्य सरकार पर, लेकिन हैं ये महत्वपूर्ण। दरअसल वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बनाने की ध्वनि इन उपचुनावों से निकलेगी।

खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी स्वीकार कर चुके हैं कि सरकार पर असर न डालने वाले उपचुनाव ज्यादा तनाव देने वाले होते हैं। इसलिए कार्यकर्ता इन उपचुनावों को गंभीरता से लें और जीत सुनिश्चित करने के लिए जुट जाएं। कांग्रेस भी इन उपचुनावों को अपने लिए एक अवसर के रूप में देख रही है। उसे उम्मीद है कि कोरोना काल के दौरान पैदा हुई विषम स्थितियों के कारण शायद उसके हिस्से कोई करिश्मा हो जाए।

हालांकि यह सच्चाई है कि 2018 में सरकार बनाने के बाद अंतर्कलह के कारण विपक्ष में आ बैठी कांग्रेस को भी इन उपचुनावों के परिणाम से कोई बड़ा फायदा नहीं होने वाला है, लेकिन वह यह जानती है कि इन उपचुनावों में यदि जीत मिलती है तो इससे भविष्य की राजनीति के लिए माहौल बनाने में उसे मदद मिल सकती है। इसीलिए वह पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है।

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