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बिजली के भविष्य की जंग अभी से शुरू हो चुकी है—क्या भारत वाकई तैयार है?

ELECTRICITY CRISIS
  • नई दिल्ली की गर्म दोपहर में जब देश की ऊर्जा पर बात हुई, तो सिर्फ़ AC के रिमोट नहीं, सोच के स्विच भी ऑन हुए

आलेख। 18 जून को दिल्ली के इंटरनेशनल सेंटर में कुछ ऐसे लोग एक साथ बैठे, जो भारत की ऊर्जा नीति के मानचित्र पर कल की दिशा तय कर सकते हैं। गोलमेज़ चर्चा का विषय था—‘Energy Security Goals for a Viksit Bharat’—लेकिन असल में यह बातचीत उस उबाल पर थी, जो देश के ऊर्जा भविष्य में अभी से दिखने लगा है।

इस चर्चा का आयोजन Climate Trends ने किया था और इसमें अमेरिका के UC Berkeley से लेकर भारत की सरकारी और निजी ऊर्जा संस्थाओं के विशेषज्ञ शामिल थे। मुद्दे थे गंभीर: बिजली की बढ़ती माँग, ठंडी हवा की गर्म राजनीति, और बैटरी के पीछे छुपी रणनीति।

2030 नहीं, असल लड़ाई तो 2027 से पहले की है

भारत की बिजली की माँग हर दशक में दोगुनी हो रही है। UC Berkeley के डॉ. निकित अभ्यंकर ने आगाह किया—”हम जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, अगर अभी से ऊर्जा रणनीति नहीं बदली तो 2027-28 तक बिजली की भारी किल्लत झेलनी पड़ सकती है।”

उनके सहकर्मी अमोल फड़के ने एक और तथ्य सामने रखा—”एक कोयला बिजलीघर बनाने में 5 से 10 साल लगते हैं, लेकिन माँग तो अभी बढ़ रही है। ऐसे में एकमात्र रास्ता है—ऊर्जा भंडारण (storage) को तेज़ी से अपनाना।”

उनका आकलन कहता है कि 2030 तक हर साल 250 गीगावॉट-घंटे के भंडारण की ज़रूरत होगी। लेकिन यह ग्लोबल सप्लाई चेन का महज 0.01% हिस्सा है—मतलब मुश्किल नहीं, लेकिन प्राथमिकता ज़रूर है।

AC की हवा में छुपा ऊर्जा संकट

इस समय देश में बिकने वाले एयर कंडीशनर में 80% हिस्सेदारी 3-स्टार वाले कम दक्ष ACs की है। GEAPP के सौरभ कुमार ने कहा, “अगर 2030 तक 30% भारतीय AC इस्तेमाल करने लगेंगे, तो हमें 150 गीगावॉट अतिरिक्त बिजली चाहिए होगी। लेकिन अगर सुपर एफिशिएंट AC लगाए जाएं, तो यही माँग 60 गीगावॉट तक घट सकती है।”

मतलब साफ़ है—अगर हम स्मार्ट और एफिशिएंट कूलिंग टेक्नोलॉजी अपनाते हैं, तो हम उसी हवा से देश को ठंडा भी रख सकते हैं और भविष्य की गर्मी से भी बचा सकते हैं।

बैटरी—सिर्फ मोबाइल के लिए नहीं, देश की ऊर्जा के लिए भी ज़रूरी

बैटरी स्टोरेज को अब केवल मोबाइल चार्ज करने का ज़रिया नहीं समझना चाहिए। NTPC Green Energy के पूर्व CEO मोहित भार्गव ने ज़ोर देकर कहा, “हमें हर दिशा में स्टोरेज सॉल्यूशन्स को अपनाना होगा—सिर्फ लिथियम पर निर्भर नहीं रह सकते।”

उन्होंने Unified Energy Interface (UEI) जैसे डिजिटलीकृत ग्रिड प्लेटफ़ॉर्म्स को भी ज़रूरी बताया—”अगर हमें 24×7 बिजली चाहिए, तो ग्रिड को भी उतना ही स्मार्ट बनाना होगा जितना उपभोक्ता बन चुका है।”

घर की छत से शुरू हो सकती है ऊर्जा क्रांति, पर DISCOMs को भी चाहिए इलाज

सौरभ कुमार ने यह भी बताया कि PM Surya Ghar Yojana के तहत एक साल में 5 गीगावॉट रूफटॉप सोलर जुड़ चुका है। यह एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन इसमें बड़ी चुनौती है—ग्रिड में इन Dcentralised स्रोतों को कैसे जोड़ा जाए?

हर रूफटॉप प्लांट की डिजिटल पहचान, डेटा ट्रैकिंग और वित्तीय मॉडल को दोबारा गढ़ने की ज़रूरत है। लेकिन अगर DISCOMs की वित्तीय हालत सुधारी नहीं गई, तो यह पूरी ऊर्जा क्रांति अधूरी रह जाएगी।

क्या हो आगे की राह?

डॉ. अभ्यंकर का सुझाव साफ है—”भारत की ऊर्जा नीति को अगले पाँच सालों के लिए साफ़ दिशा देनी होगी। इसमें सस्ती और व्यवहारिक रणनीति अपनानी होगी—मुख्यतः रिन्यूएबल्स और स्टोरेज पर केंद्रित।”

उन्होंने ट्रांसपोर्ट सेक्टर का उदाहरण भी दिया—”भारत में अभी सिर्फ़ 1,000 में से 30 लोग कार के मालिक हैं। जैसे-जैसे यह संख्या बढ़ेगी, हमें तय करना होगा कि वह पेट्रोल से चलेंगी या बैटरियों से।”

एक सादा सवाल, जो हर भारतीय से पूछा जाना चाहिए:

क्या आप चाहते हैं कि आपकी अगली पीढ़ी बिजली कटौती के अंधेरे में पढ़े या एक स्मार्ट ग्रिड के उजाले में बढ़े?

ये गोल मेज़ बातचीत महज़ रिपोर्ट या रिपोर्ट कार्ड नहीं थी—यह एक अलार्म है, जो कह रहा है कि वक्त अब भी है, लेकिन बहुत नहीं।

ऊर्जा भविष्य का सवाल केवल इंजीनियरों और पॉलिसीमेकर्स के दफ्तर में नहीं रहेगा। ये बातचीत अब हमारे कमरों, छतों और रिमोट्स तक पहुँच चुकी है। और उस रिमोट पर अगला बटन हमें मिलकर दबाना है—स्मार्टली, सस्टेनेबली, और समय रहते।

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