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एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी ने सैटेलाइट रिसेप्शन और रेडियो एस्ट्रोनॉमी के लिए ग्राउंड स्टेशन की स्थापना की

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी ने सैटेलाइट रिसेप्शन और रेडियो एस्ट्रोनॉमी के लिए ग्राउंड स्टेशन की स्थापना की

देहरादून: एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी (MIT-WPU) ने अपने पुणे परिसर में अत्याधुनिक सुविधाओं वाला ग्राउंड स्टेशन स्थापित किया है, जो संस्थान की नैनो-सैटेलाइट पहल का एक हिस्सा है। MIT-WPU के कार्यकारी अध्यक्ष, श्री. राहुल कराड ने इस ग्राउंड स्टेशन का उद्घाटन किया, जो सैटेलाइट रिसेप्शन के साथ-साथ रेडियो एस्ट्रोनॉमी में सक्षम होने के कारण इस श्रेणी में बिल्कुल अनोखी सुविधा है।

इसकी मदद से रेडियो एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में शोध कार्यों को बेहतर बनाने तथा उपग्रह संचार क्षमताओं में सुधार के लिए बहुमूल्य डेटा प्राप्त करना संभव हो पाएगा। इस अवसर पर एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के प्रति उपकुलपति, प्रो. डॉ. मिलिंद पांडे ने कहा, “यह ग्राउंड स्टेशन अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है, जो उपग्रह संचार और रेडियो एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में एक नई पद्धति की शुरुआत का प्रतीक है। ये ग्राउंड स्टेशन अपनी दोहरी क्षमता की वजह से पूरी दुनिया में सबसे अलग है।

यह उपग्रहों के साथ संचार करने के अलावा खगोलीय पिंडों से होने वाले उत्सर्जन का अध्ययन करने में भी सक्षम है, जो वास्तव में विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रौद्योगिकी और अनुसंधान का लाभ उठाने का सबसे बेहतर साधन है। MIT-WPU के छात्रों के लिए इस परियोजना पर काम करने और सीखने का अनुभव अत्यंत मूल्यवान साबित होगा, साथ ही यह उन्हें एस्ट्रोनॉमी, एयरोस्पेस और इससे संबंधित क्षेत्रों में करियर के लिए तैयार करेगा।

यह उनके लिए निकट भविष्य में नैनो-सैटेलाइट को डिज़ाइन करने और लॉन्च करने की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रयोग करने का सबसे उपयुक्त माध्यम भी साबित होगा।” MIT-WPU के स्कूल ऑफ़ साइंस एंड एनवायरनमेंटल स्टडीज के एसोसिएट डीन, डॉ. अनूप काले ने कहा, “सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करने और उसे अमल में लाने के बीच के अंतर को दूर करना ही इस ग्राउंड स्टेशन का प्राथमिक उद्देश्य है, जिसके लिए हम छात्रों को उपग्रह संचार और रेडियो एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में प्रयोग करने का अनुभव प्रदान कर रहे हैं।

इस सुविधा का उपयोग कई तरह के महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाएगा, जिनमें जलवायु विज्ञान, आपदा प्रबंधन और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में शोध कार्यों में सहायता के लिए ओपन-सोर्स सैटेलाइट से डेटा प्राप्त करना और उसका विश्लेषण करना शामिल है। इससे अंतरिक्ष में होने वाले उत्सर्जन का अध्ययन करना भी संभव होगा, जिससे खगोलीय पिंडों के व्यवहार के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त की जा सकेगी।”

ग्राउंड स्टेशन में छह अलग-अलग एंटीना लगे हैं, जिन्हें लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO), हाई एलिप्टिकल ऑर्बिट (HEO) और जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट (GEO) में सेटेलाइट्स से सिग्नल प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें लगाए गए विशेष प्रकार के डिश और हॉर्न एंटेना उच्च-आवृत्ति वाले संकेतों को प्राप्त करके उन्हें एक शक्तिशाली रेडियो एस्ट्रोनॉमी टूल में बदल देते हैं, जिससे ब्रह्मांड के सबसे सूक्ष्म संकेतों, आकाशगंगा मानचित्रण, डार्क मैटर तथा अंतरिक्ष की रेडियो इमेजरी का अध्ययन करना संभव हो जाता है।

यह ग्राउंड स्टेशन ओपन-सोर्स सेटेलाइट्स से सिग्नल प्राप्त करके मौसम संबंधी डेटा एकत्र कर सकता है, साथ ही क्यूबसैट, नैनोसैट और माइक्रोसैट से टेलीमेट्री भी प्राप्त कर सकता है। MIT-WPU में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र एवं कॉसमॉस क्लब के सदस्य, ओजस धूमाल ने कहा, “यह विश्वविद्यालय एस्ट्रोनॉमी से लगाव रखने वाले छात्रों की जिज्ञासा को शांत करने और उनके जुनून को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, और यहाँ के कॉसमॉस क्लब के छात्र ग्राउंड स्टेशन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।

उन्होंने आगे कहा, “इस सुविधा का नियंत्रण कक्ष उपग्रह संचार (डाउनलिंक) और अंतरिक्ष के अवलोकन के बेहद जटिल कार्यों को एक-साथ संभालने में सक्षम है। दोनों तरह की क्षमताओं का यह अनोखा मेल वाकई दुर्लभ है। फिलहाल यह ग्राउंड स्टेशन NOAA और मेटियोर सैटेलाइट्स के संपर्क में है तथा डेटा प्राप्त कर रहा है, जिनसे हमें मौसम के पैटर्न को समझने और उस पर प्रतिक्रिया देने के साथ-साथ पर्यावरण में होने वाले बदलावों पर नज़र रखने में मदद मिलती है।”

छात्र HAM (एमेच्योर रेडियो) लाइसेंस प्राप्त करने के बाद, प्रायोगिक शिक्षण अनुभव के भाग के रूप में अलग-अलग सैटेलाइट्स पर डेटा अपलोड करने की भी तैयारी कर रहे हैं। MIT-WPU के 35 छात्रों की एक टीम 4 प्राध्यापकों के साथ इस परियोजना पर काम कर रही है, जिनमें स्कूल ऑफ़ साइंस एंड एनवायरनमेंटल स्टडीज के एसोसिएट डीन, डॉ. अनूप काले, तथा यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ साइंस एंड एनवायरनमेंटल स्टडीज के भौतिकी विभाग से प्रो. अनघा करने, डॉ. देवव्रत सिंह एवं डॉ. सचिन कुलकर्णी शामिल हैं।

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