शादियों पर फिजूल खर्ची वाली संस्कृतियों को सामाजिक स्तर पर रोकना समय की मांग

द मैरिज (अनिवार्य पंजीकरण व बेवजह खर्च रोकथाम) बिल 2016 व विशेष अवसरों पर फिजूल खर्ची रोकथाम विधेयक 2020(Prevention of Wasteful Expenses Bill 2020) संशोधित कर पारित करना समय की मांग

विवाह पर फिजूल खर्ची रोकथाम कानून से कन्या भ्रूण हत्या रोकने, लड़कियों का सम्मान बढ़ाने व लड़की को बोझ के रूप में देखने की संस्कृति पर लगाम लगेगी- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर सारी दुनियां बखूबी जानती है कि भारत में सामाजिक रीतिरिवाज धार्मिक मान्यताओं व आस्था के हर मंगल कार्यों को पूरी प्रक्रिया के साथ बिना किसी दिखावे के पूरी श्रद्धा के साथ संपन्न होते हैं जो दुनियां के अन्य देशों में देखने को नहीं मिलते,उन्हीं रीति रिवाजों में एक कार्य शादी का भी है जो पौराणिक जमाने से ही भारत में अपने-अपने धर्म जाति केअनुसार पूरे अनुष्ठान से व बहुत कम खर्चे में किया जाता रहा है।मुझे याद है जब मैं छोटा था तो मेरे बड़े भाई की शादी की सात फेरा रस्म सुबह 4 बजे तक चली थी और जो हमने सामाजिक स्तरपर शादी के उपलक्ष में रात्रि भोज दिए थे वह पत्ते से बनी हुई पत्तल वह दोने में नीचे पंगत में बैठा कर खिलाए थे,जिसमें क्रमवार चावल सब्जी रोटी लड्डू या मिठाई परोसी जा रही थी।

हालांकि वह क्रम आज 12 जुलाई 2024 तक भी कई स्थानों पर चालू है।परंतु यह बहुत कम हो गया है, इसका स्थान अब बड़े समारोहों डेस्टिनेशन मैरिज, प्री मैरिज शूटिंग प्री मैरिज पार्टी सहित अनेको पश्चिमी रीति रिवाजों ने ले लिया है जो हर व्यक्ति के लिए एक प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है।मैंने अनेकस्थानों पर शादी में जाता हूं तो देखता हूं कि उनकी वित्तीयस्थिति हालांकि कमजोर है, परंतु अपनी खेती जमीन मकान बेचकर भी डेस्टिनेशन मैरिज करने के लिए आमादा है जो पैकेज लाखों से शुरू होकर करोड़ तक जाता है। अनेक शादी समारोह में मैं देखता हूं कि खाद्य पदार्थों के स्टाल 50 से शुरू होकर 200 तक होते हैं, जिसमें अनेक स्टॉल उपयोग में ही नहीं आते परंतु उनका पैकेज तो भर के देना पड़ता है।

एक शादी समारोह में लाखों करोड़ों खर्च कर दिए जाते हैं, जबकि उतने ही बजट में सैकड़ो गरीब कन्याओं की शादी की जा सकती है जिसको रेखांकित करना आज जरूरी है।वैसे अनेक समाजों ने अपनेसमाज के पंचायत स्तरपर शादी ब्याहमें आइटम या स्टॉल फिक्स करने का निर्णय भी सुना दिया है, व उल्लंघन करने पर पनिशमेंट भी फिक्स की है परंतु उसका पालन होते नहीं दिख रहा है। इसलिए अब समय आ गया है कि इसमें केंद्र या राज्य सरकारों को शासकीय स्तरपर एक विधेयक लाना अनिवार्य हो गया है। इस आर्टिकल के माध्यम से मैं केंद्र व राज्य सरकारों से अनुरोध करता हूं कि इस विषय पर सकारात्मक संज्ञान लेकर अपने राज्य और केंद्र सरकार को जबकि आगामी 22 जुलाई से 12 अगस्त 2024 तक चलने वाले संसद सत्र में इस बिल पारित करवाएं जो पहले भी संसद में 30 वर्षों में 10 बार पेश हो चुका है परंतु उसे पारित नहीं किया जा सका है।

इसलिए 18वीं लोकसभा के बजट सत्र में ही मैरिजअनिवार्य पंजीकरण व बेवजह खर्च रोकथाम विधेयक 2016 व विशेष अवसरों पर फिजूलखर्ची रोकथाम विधेयक 2020(Prevention of Wasteful Expenses Bill 2020) जो दो माननीय सांसदों द्वारा प्राइवेट बिल के रूप में पेश किए गए थे, उन्हें फिर संशोधित कर सरकार स्वतः संज्ञान लेकर 22 जुलाई से 12 अगस्त तक चलने वाले बजट सत्र में पेश करवाए, जिसकी तैयारी अभी से ही की जानी चाहिए। आज इस विषय पर हम इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि अनेक डेस्टिनेशन मैरिजों के साथ ही वर्तमान में एक बहुत बड़े घराने की शादी की तैयारी महीनों से चल रही है, जिसे देखकर मेरा ध्यानइस तरफ़ गया और इस पर आधारित एक आर्टिकल लिखने का मैंने मन बनाया एक हफ्ते के मीडिया में रिसर्च के बाद यह आर्टिकल तैयार कर पाया हूं।

चूंकि विवाह पर फिजूल खर्ची रोकथाम कानून से कन्या भ्रूण हत्या रोकने,लड़कियों का सम्मान बढ़ाने व लड़की को बोझ के रूप में देखने की संस्कृति पर लगाम लगेगी, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे द मैरिज(अनिवार्य पंजीकरण का बेवजाह खर्च रोकथाम)बिल 2016 व विशेष अवसरों पर फिजूल खर्ची रोकथाम विधेयक 2020 संशोधित कर पारित करना समय की मांग है। साथियों बात अगर हम भारत में शादी समारोह में खर्च की करें तो,शादी-ब्याह पर हर परिवार दिल खोलकर खर्च करता है, क्योंकि यह जिंदगी का सबसे बड़ा इवेंट होता है। खास बात है कि यह इवेंट देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा महत्वपूर्ण बन गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वेडिंग इंडस्ट्री करीब 130 अरब डॉलर (10 लाख करोड़ रुपये) पर पहुंच गई है।

हैरानी की बात है कि भोजन और ग्रॉसरी मार्केट के बाद, वेडिंग मार्केट दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है।एक घर में शादी होने से कई इंडस्ट्री के लोगों को रोजगार मिल रहा है। चूंकि, अब शादी समारोह बहुत लग्जरी हो गया है इसलिए इवेंट, केटेरिंग से लेकर कई इंडस्ट्री को इसका फायदा मिल रहा है। इंडियन वेडिंग इंडस्ट्री पर रिपोर्ट जारी करने वाली कैपिटल मार्केट फर्म जेफरीज ने कहा कि इंडियन वेडिंग मार्केट का साइज अमेरिकी बाजार से दोगुना लेकिन चाइनीज मार्केट से कम है। उन्होने अपनी रिपोर्ट में शादी को लेकर होने वाले अलग-अलग खर्चों को आधार बनाया इनमें ज्वैलरी से लेकर केटरिंग इंडस्ट्री तक शामिल हैं।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में होने वाली हर शादी पर करीब 12.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। हैरानी की बात है कि यह आंकड़ा भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी से लगभग 5 गुना है, जो कि 2.4 लाख रुपये है। वहीं, एनुअल हाउसहोल्ड इनकम से 3 गुना है, जो कि 4 लाख रुपये है। खास बात है कि भारत में लोग शादियों पर कई अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा खर्च करतेहैं।देश में एक लग्जरी वेडिंग में होने वाला खर्च करीब 20 और 30 लाख रुपये आता है।इनमें सबसे ज्यादापैसा होटल केटरिंग डेकोरेशन और एंटरटेनमेंटशामिल है इसमें ज्वैलरी,कपड़े औरट्रैवल किराया शामिल नहीं है. इसके अलावा, बेहद अमीर लोग, डेस्टिनेशन वेडिंग पर और भी ज्यादा खर्च करते हैं।हर शादी में सबसे ज्यादा खर्च,ज्वैलरी पर होता है।

शादीब्याह के सीजन में सर्राफा उद्योग को सबसे ज्यादा 35-40 फीसदी का रेवेन्यू हासिल होता है।इसके बाद नंबर आता है केटरिंग इंडस्ट्री का,जिसे 24-26 फीसदी राजस्व मिलता है।इवेंट प्लानिंग इंडस्ट्री को 18-20 फीसदी।फोटोग्राफी 10-12 फीसदी।कपड़ा उद्योग को 9-10 फीसदी।डेकोरेशन इंडस्ट्री को भी 9-10 फीसदीइसके अलावा, अन्य खर्चों के चलते विभिन्न इंडस्ट्रीज को 20-25 फीसदी रेवेन्यू मिलता है।वित्त वर्ष 2023-2024 में, भारतीय विवाह बाजार 130 बिलियन डॉलर (लगभग 10 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया, जो खाद्य और किराना क्षेत्र खुदरा बाजार के कुल 681 बिलियन डॉलर के बाद दूसरे स्थान पर है। साथियों बात अगर हम शादियों में फिजूल खर्ची रोकथाम बिल 2017 में संसद में लाने की करें तो,साल 2017 में बिहार के सुपौल से लोकसभा सांसद ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था।

इस बिल में शादी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की बात कही गई थी। इस बिल में मेहमानों की संख्या सीमित करने के अलावा 5 लाख रुपये से अधिक खर्च करने पर रोक लगाने की भी सिफारिश की गई थी।सांसद ने मांग की कि अगर किसी ने तय की गयी राशि से अधिक पैसे खर्च किए तो उस पर 10 पर्सेंट का टैक्स लगाया जाए और टैक्स का ये पैसा गरीब लड़कियों की शादियों पर खर्च किया जाए।हालांकि यह बिल संसद में पास नहीं हो सका और शादियों में फिजूलखर्ची बदस्तूर जारी है। अगर यह बिल देश में लागू हो जाता तो हर शादी का पंजीकरण 60 दिनों के अंदर करना अनिवार्य होता।साथ ही सरकार शादी में आने वाले मेहमानों-रिश्तेदारों और बारात की संख्या के साथ-साथ शादी और रिसेप्शन में परोसे जाने वाले व्यंजनों की भी सीमा तय कर सकती थी।

ताकि शादियों में होने वाली खाने की बर्बादी पर लगाम लगाई जा सके। साथियों बात अगर हम 2020 में एक विधेयक संसद में पेश होने की करें तो,लोकसभा में पंजाब के एक संसद सदस्य ने एक नया विधेयक पेश किया था, जो शादियों में आमंत्रित किए जाने वालेमेहमानों की संख्या और परोसे जाने वाले व्यंजनों की सीमा तय करने के अलावा नवविवाहितों को उपहारों पर खर्च की जाने वाली राशि की सीमा तय करने का प्रावधान करता है,ताकि फिजूलखर्ची को रोका जा सके। बिल का नाम है विशेष अवसरों पर फिजूलखर्ची रोकथाम विधेयक 2020(Prevention of Wasteful Expenses Bill 2020) इसमें यह भी प्रावधान है कि फालतू उपहारों पर पैसे खर्च करनेकी जगह गरीबों,जरूरतमंदों अनाथों या समाज के कमजोर वर्गों या समाजसेवा का कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों को दान दिया जाना चाहिए।

Prevention of Wasteful Expenses Bill 2020 विधेयक का उद्देश्य फिजूलखर्ची वाली शादियों की संस्कृति को खत्म करना है, जो विशेष रूप से दुल्हन के परिवार पर बहुत अधिक वित्तीय बोझ डालती हैं। विधेयक के पीछे के तर्क को समझाते हुए कहा था, मैंने ऐसे कई वाकये सुने हैं कि कैसे लोगों को भव्य तरीके से शादियां करने के लिए अपने प्लॉट, संपत्तियां बेचनी पड़ीं और बैंक ऋण का विकल्प चुनना पड़ा।विवाह पर फिजूल खर्च में कटौती से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में काफी मदद मिल सकती है, क्योंकि तब लड़की को बोझ के रूप में नहीं देखा जाएगा उन्होने कहा कि उन्होंने 2019 में एक शादी में भाग लेने के बाद विधेयक की परिकल्पना की थी।उनके मुताबिक, वहां 285 ट्रे में व्यंजन थे, मैंने देखा कि ऐसी 129 ट्रे में से किसी ने एक चम्मच भी नहीं निकाला था। यह सब बर्बाद हो गया।

विधेयक में प्रावधान है कि शादी में दूल्हा और दुल्हन दोनों के परिवारों से आमंत्रित अतिथियों की संख्या 100 से अधिक नहीं होनी चाहिए; परोसे गए व्यंजनों की संख्या 10 से अधिक नहीं होनी चाहिए; और उपहारों का मूल्य 2,500 रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। गिल ने कहा, मैंने इसे सबसे पहले अपने परिवार में लागू कियाइस साल जब मैंने अपने बेटे और बेटी की शादी की तो 30 से 40 मेहमान थे। साथियों बात अगर हम पिछले 30 वर्षों में 10 बार ऐसे विधेयक पेशहोने की करेंतो विधेयकों का इतिहास पिछले 30 वर्षों में संसद में कुल दस ऐसे विधेयक पेश किए गए।

इनमें से पांच विधेयक लोकसभा में और शेष पांच राज्यसभा में पेश किए गए। इनमें से तीन को छोड़कर बाकी सभी विधेयक निरस्त हो चुके हैं। लोकसभा की वेबसाइट पर तीनों को अभी भी लंबित दिखाया गया है।
वर्ष,             विधेयक का नाम,                                      सदस्य का नाम,                घर स्थिति

1988      विवाह व्यय कटौती विधेयक,1988        सुरेश पचौरी

राज्य सभा कालातीत 1996 विवाह और जन्मदिन समारोह पर भव्य और फिजूल खर्ची का प्रतिषेध विधेयक,1996 सरोज खापर्डे राज्य सभा कालातीत 2000 विवाह (व्यय पर प्रतिबंध) विधेयक, 2000 गंगासंद्र सिद्दप्पा बसवराज लोकसभा कालातीत 2005 विवाह पर फिजूलखर्ची का प्रतिषेध विधेयक, 2005 संबाशिवा रायपति राव लोकसभा कालातीत 2005 विवाहों पर फिजूलखर्ची एवं व्यर्थ व्यय प्रतिषेध विधेयक, 2005 प्रेमा करिअप्पा राज्य सभा लंबित 2011 विवाह पर अपव्यय और असीमित व्यय की रोकथाम विधेयक, 2011 पी.जे. कुरियन राज्य सभा कालातीत 2011 विवाह (सरल समारोह, अनिवार्य पंजीकरण और खाद्य पदार्थों की बर्बादी की रोकथाम) विधेयक, 2011 अखिलेश दास गुप्ता राज्य सभा कालातीत 2011 विवाह पर फिजूलखर्ची का प्रतिषेध विधेयक, 2011 चौहान महेंद्रसिंह लोकसभा कालातीत 2016 विवाह (अनिवार्य m पंजीकरण और फिजूलखर्ची की रोकथाम) विधेयक, 2016 रंजीत रंजन लोकसभा लंबित 2017 विवाह पर अपव्यय औरअसीमित व्यय की रोकथाम विधेयक 2017 गोपाल चिनय्या शेट्टी लोकसभा लंबित इनमें से पाँच (5) बिलों का पाठ संसद की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि द मैरिज(अनिवार्य पंजीकरण व बेवजह खर्च रोकथाम)बिल 2016 व विशेष अवसरों पर फिजूल खर्ची रोकथाम विधेयक 2020(Prevention of Wasteful Expenses Bill 2020) संशोधित कर पारित करना समय की मांग.शादियों पर फिजूल खर्ची वाली संस्कृतियों को सामाजिक स्तरपर जनजागरण फैलाकर रोकना समय की मांग।विवाह पर फिजूल खर्ची रोकथाम कानून से कन्या भ्रूण हत्या रोकने लड़कियों का सम्मान बढ़ाने व लड़की को बोझ के रूप में देखने की संस्कृति पर लगाम लगेगी।

Advocate Kishan Bhavnani

संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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